जागरण संवाददाता,आगरा: लगातार लापरवाही से नाराज मंत्रालय ने इस बार केंद्रीय हिंदी संस्थान को तगड़ा झटका दे दिया। मरम्मत के लिए भेजे गए 5.30 करोड़ के प्रस्ताव में कटौती करते हुए सिर्फ तीस लाख मंजूर किए हैं। संस्थान द्वारा चार साल से पैसा दिए जाने के बावजूद मरम्मत कार्य न कराए जाने के कारण यह कदम उठाया है।
संस्थान द्वारा कई साल से करोड़ों रुपये का बजट मंत्रालय से प्रोजेक्ट के नाम पर मांगा जाता रहा है, लेकिन साल के अंत में प्रोजेक्ट पूरे न होने पर पैसा लौटा दिया जाता है। मरम्मत कार्य के साथ भी यही स्थिति है। संस्थान चार साल से दो पुरुष छात्रावास, एक महिला छात्रावास, मुख्य भवन की मरम्मत के नाम पर तीन से चार करोड़ रुपये मांग रहा है, लेकिन वित्तीय वर्ष के अंत में हर बार यह पैसा लौटा दिया जाता है। इस बार भी रिनोवेशन के लिए 5.30 करोड़ रुपये संस्थान के लिए मंजूर हो गए थे। संस्थान विद्यार्थियों की परीक्षा के बाद निर्माण कार्य शुरू करने जा रहा था लेकिन कुछ दिन पहले मंत्रालय ने पांच करोड़ रुपये काटकर महज तीस लाख रुपये बजट पास किया है। मंत्रालय का तर्क है कि संस्थान बार-बार पैसा लेने के बावजूद प्रोजेक्ट पूरे नहीं कर रहा। मरम्मत कार्य भी नहीं करा रहा। ऐसे में बजट देने का क्या फायदा।
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यह बात सही है कि पिछले चार साल से मरम्मत कार्य के नाम पर लिया जा रहा पैसा संस्थान द्वारा लौटाया जा रहा है। इस बार मरम्मत कार्य के लिए वित्त समिति और शासी समिति की बैठक में पांच करोड़, तीस लाख रुपये के बजट को मंजूरी दे दी गई थी, लेकिन मंत्रालय ने केवल तीस लाख रुपये प्रदान किए हैं।
अनिल चौधरी, लेखाधिकारी, केंद्रीय हिंदी संस्थान
स्रोत
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/agra-city-12148867.html
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